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"प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा की उपेक्षा भारत के पिछड़ेपन का कारण हैं।" | UPSC CSE mains essay writing model Answer 2019

 "प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा की उपेक्षा भारत के पिछड़ेपन का कारण हैं।"

                       (UPSC MAINS 2019 ESSAY)

         "हम एक ऐसे समावेशी समाज के निर्माण का प्रयास कर रहें हैं, हम एक ऐसा देश बनाने जा रहे हैं, जिसमे कोई भी बाहर न छूटे | "                                                         - फ्रैंकलिन डी रूजवेल्ट

  

             यह कथन स्पष्ट करता है कि अगर राष्ट्र अपनी प्रगति को प्राप्त करना चाहता है, तो वह समावेशी विकास को प्राप्त करे, लेकिन समावेशी विकास के प्रारंभिक चरण शिक्षा व स्वास्थ्य है जिसकी उपेक्षा नहीं की जा सकती, ऐसे में भारत के संदर्भ में कहा जा सकता है :- 

             

               "अशिक्षित को शिक्षा दो,

               अज्ञानी को ज्ञान 

               रोगी का रोग भगाओ 

               और चलाओं निरोग अभियान 

               तभी बन सकता हैं मेरा भारत महान।"


              अर्थात् भारत समावेशी विकास तभी प्राप्त कर सकता है जब शिक्षा और स्वास्थ्य में प्रगति हों। वर्तमान भारत में शिक्षा की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार साक्षरता दर 64.08 प्रतिशत हैं, वहीं नेपाल व बांग्लादेश की साक्षरता दर भारत से ज्यादा हैं। दूसरी तरफ स्वास्थ्य में विश्व स्वास्थ्य रिपोर्ट के अनुसार भारत का स्थान 58 वाँ हैं जो स्वास्थ्य की निम्न स्थिति को प्रदर्शित करता हैं। ऐसे में हमें यह जानना आवश्यक हैं कि भारत में शिक्षा - स्वास्थ्य की निम्न स्थिति के कौन-कौनसे कारण विद्यमान हैं? साथ निम्न स्थिति के परिणाम किस तरह भारत के पिछडेपन के कारण हैं ?

           भारत को शिक्षा व स्वास्थ्य की जन्मभूमि कहा जाता है, जहाँ स्वास्थ्य में सुश्रुत , चरक जैसे महान चिकित्सक थे वहीं प्राचीन इतिहास में शिक्षा भी नालन्दा, विक्रमशीला, जैसे विश्वविद्यालय की सर्वश्रेष्ठता पर थी। लेकिन आधुनिकता के साथ साथ भारत में शिक्षा व स्वास्थ्य दोनों में गिरावट प्रदर्शित होती हैं इस तरह गिरावट के विभिन्न कारण निम्न हैं:-


            भारत में शिक्षा का व्यवसायीकरण तथा स्वास्थ्य का निजीकरण के परिणामस्वरूप ऑउट ऑफ पॉकेट व्यय में बढ़ोतरी हुई हैं जिससे गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की कमी, तथा वंचित वर्गों से शिक्षा की दूरी व्यवसायीकरण का परिणाम हैं। दूसरी तरफ स्वास्थ्य के क्षेत्र में दो तिहाई (2/3) अस्पताल निजी क्षेत्र से संबंधित हैं इस तरह शिक्षा व स्वास्थ्य के क्षेत्र में विद्यमान निजीकरण व व्यवसायिकरण के कारण विभिन्न वर्गो तक पहुँच न होना ही उपेक्षा का परिणाम हैं।


               दूसरी तरफ देखे तो भारत में जनसंख्या वृद्धि व समाज में व्याप्त निर्धनता के कारण भी स्वास्थ्य व शिक्षा निम्न स्तर पर विद्यमान हैं जहाँ जनसंख्या वृद्धि से संसाधनो पर दबाव बढ़ता जा रहा है साथ ही छात्र शिक्षक अनुपात, डॉक्टर - रोगी अनुपात भी विचलित हो रहा हैं उसी प्रकार निर्धनता से व्यक्ति शिक्षा व स्वास्थ्य की भौगोलिक पहुँच न होना भी चिंताजनक विषय हैं।


           "जिस तरह हमनें अंतरिक्ष पर विजय प्राप्त कर ली हैं उसी तरह हमें शिक्षा, स्वास्थ्य, निर्धनता पर विजय प्राप्त करने की आवश्यकता हैं।"


           वर्तमान में शिक्षा व स्वास्थ्य पर राजनीतिक इच्छाशक्ति का कमजोर होना भी एक निम्न स्तर का परिणाम है इसी तरह शिक्षा व स्वास्थ्य पर विकसित देशों द्वारा किया गया बजटीय व्यय सकल घरेलू उत्पाद का 6-7% हैं वहीं भारत में शिक्षा पर 4.4% व स्वास्थ्य में 1.4% से कम है जिसका परिणाम स्वास्थ्य व शिक्षा के क्षेत्र के परिणाम व दक्षता से लगाया जा सकता है। 

           

       हाल ही में विश्व बैंक द्वारा जारी मानव पूंजी सूचकांक रिपोर्ट में भारत का स्थान 174 देशों में 116 वाँ हैं जो गंभीर स्थिति को प्रकट करता हैं। इस रिपोर्ट के अनुसार भारत में बेरोजगारी, भष्ट्राचार, निर्धनता तथा शिक्षा व स्वास्थ्य में कमजोर स्थिति के कारण ही निम्न स्थिति पर विद्यमान हैं। उपरोक्त आधार पर यह कहा जा सकता हैं कि भारत के पिछड़ेपन में विभिन्न कारण विद्यमान हैं लेकिन हमें यह जानना भी जरूरी है कि कारण के परिणाम क्या हैं?

          वर्तमान भारत में निर्धनता 28% हैं जिसका प्रमुख कारण शिक्षा व स्वास्थ्य की कमी हैं। यदि शिक्षा व स्वास्थ्य पर इसी तरह निम्न स्तर विद्यमान रहा तो निश्चित ही निर्धनता में वृद्धि होगी, क्योंकि अच्छे स्वास्थ्य व अच्छी शिक्षा के अभाव में व्यक्ति न रोजगार ग्रहण कर सकता हैं और न ही राष्ट्रीय विकास में शामिल हो सकता है।


           इस प्रकार राष्ट्रीय विकास भी स्वास्थ्य व शिक्षा से बाधित होता होता हैं। इन दोनों तत्वों के अभाव में किसी भी राष्ट्र की मानव - संसाधन उत्पादकता भी प्रभावित होती हैं साथ - ही सरकार के कर अनुपात भी निम्न स्तर पर होते हैं जिससे राजकोषीय दबाव बढ़ता जाता है।

           

           उपरोक्त आधार पर यह भी विचारणीय है कि जहाँ शिक्षा व स्वास्थ्य की कमी होगी, वहाँ अपराधीकरण, घृणा, द्वेष की भावना भी अधिक होगी, जो एक राष्ट्र के लिए नकारात्मक छवि को प्रदर्शित करता हैं इसी पर आधारित निर्धनता के परिणामस्वरूप विद्रोह, विरोध तथा असमानता में भी बढ़ोतरी होती हैं। 


          आज भारत मे  51% महिलाएँ एनीमिया से ग्रसित हैं, वही कुपोषण के आँकड़े भी गंभीर स्थिति को प्रदर्शित करते हैं ऐसे में हम राष्ट्र के समावेशी विकास की परिकल्पना कैसे कर सकते है?


               इस तरह वर्तमान भारत 85% से अधिक अनौपचारिक रोजगार से संलग्न हैं तथा अनौपचारिक सुरक्षा संसाधनों व सुविधाओं के अभाव में निम्नस्तरीय दशा विद्यमान हैं वहीं शिक्षा के अभाव में औपचारिक क्षेत्र में 5% से भी कम कौशल रोजगार विद्यमान हैं। इस प्रकार यह कहा जा सकता हैं कि रोजगार की निम्नस्तरीय दशा ने ही शिक्षा व स्वास्थ्य को भी प्रभावित किया हैं। 

               

          लिहाज़ा भारत में उपरोक्त चुनौतियों के बावजूद भी भारत ने शिक्षा व स्वास्थ्य के क्षेत्र में उपलब्धियां भी प्राप्त की हैं। जहाँ विश्व की सबसे बड़ी स्वास्थ्य योजना आयुष्मान भारत योजना का संचालन भी भारत ही कर रहा है ऐसे में विभिन्न उपलब्धियाँ हैं जो भारत को स्वास्थ्य व शिक्षा के क्षेत्र में प्रगति को दर्शाती हैं।


           भारतीय संविधान व्यक्ति के मूल अधिकार के रूप में अनु. 21 के तहत गरिमापूर्ण जीवन का अधिकार प्रदान करता हैं दूसरी तरफ अनु. 21(A) शिक्षा का अधिकार प्रदान करता है इस तरह संविधान ने विभिन्न दायित्व राज्य पर निर्धारित किए जो व्यक्ति के सर्वागीण विकास पर बल देते हैं। 


             वर्तमान विश्व की सबसे बड़ी स्वास्थ्य योजना आयुष्मान भारत योजना हैं। इस योजना के अंतर्गत 10 करोड़ परिवार शामिल हैं जिन्हें प्रतिवर्ष 5 लाख रूपये का स्वास्थ्य बीमा प्रदान किया गया हैं। इस तरह की योजना भारत के स्वास्थ्य क्षेत्र में उपलब्धि को दर्शाती है। 

             

             भारत द्वारा लागू की गई नई शिक्षा नीति भी भारत में शिक्षा के क्षेत्र में उपलब्धि का परिणाम हैं यह शिक्षा नीति भारत के पारंपरिक शिक्षा पद्धति के साथ-साथ आधुनिक शिक्षा पद्धति का मिश्रण हैं जो भारत में नई पीढ़ी के सर्वांगीण विकास के लिए आवश्यक हैं।


            यहाँ यह भी विचारणीय हैं कि कोविड -19 की महामारी के दौरान भारत के पास पर्याप्त संसाधन की कमी के बावजूद भी भारत द्वारा किया गया स्वास्थ्य के क्षेत्र में कार्य काबिल-ए-तारीफ था वही दूसरी तरफ विश्व के अन्य देश स्वास्थ्य के क्षेत्र में गंभीर रूप से प्रभावित हुए थे।


            दूसरी तरफ शिक्षा के क्षेत्र में भारत द्वारा मिड-डे-मिल जैसी योजना बच्चों के स्वास्थ्य के साथ - साथ गुणवत्तापूर्ण भोजन विद्यालय परिसर के भीतर उपलब्ध करवाना भी भारत की शिक्षा के क्षेत्र में उपलब्धि को दर्शाता है।


            इन सभी कोशिशों के बावजूद भारत को शिक्षा व स्वास्थ्य के क्षेत्र में और भी प्रयास करने की आवश्यकता हैं, जिससे भारत नव विश्व के लिए विश्वगुरु बन सकें हैं जो निम्न हैं :-

            

              सर्वप्रथम भारत को शिक्षा व स्वास्थ्य में पर्याप्त बजट का आवंटन करना चाहिए, जिससे प्रगतिशील शिक्षा व स्वास्थ्य का निर्माण किया जा सकें। इसी तरह भारत को निर्धनता को दूर करने के भी प्रभावी प्रयास करने की आवश्यकता हैं क्योंकि निर्धनता का प्रत्यक्ष संबंध शिक्षा व स्वास्थ्य से हैं।


               भारत में शिक्षा के क्षेत्र में दिल्ली मॉडल तथा स्वास्थ्य के क्षेत्र में ब्राजील मॉडल को अपनाया जा सकता है। जहाँ दिल्ली मॉडल शिक्षा में 25% व्यय सीमा के साथ सामुदायिक भागीदारी को बढ़ावा देता, वही ब्राजील मॉडल के तहत सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज को नागरिक का मूल अधिकार माना गया है।


                दूसरी तरफ भारत में शिक्षा व स्वास्थ्य में ग्रामीण भारत बनाम शहरी भारत के मध्य असमानता विद्यमान हैं, जहाँ ग्रामीण भारत में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की कमी, डॉक्टर की कमी तथा पर्याप्त अवसंरचना का अभाव हैं वहीं शहरी क्षेत्र का प्रदर्शन भी प्रशंसाजनक नहीं हैं। इस तरह विद्यमान असमानता को दूर कर सतत विकास लक्ष्य 3 व 4 को प्राप्त किया जा सकता है। 

               

         भारत को आयुर्वेद का घर कहा जाता हैं तथा शिक्षा में भारत की गुरुकुल पद्धति प्राचीन इतिहास से ही प्रसिद्ध हैं। अत: भारत को शिक्षा की पारंपरिक पद्धति के साथ-साथ आधुनिक शिक्षा को जीवंत करना चाहिए, वहीं हाल के वर्षों में आयुर्वेद के प्रचलन में बढ़ोतरी का सदुपयोग करने की आवश्यकता हैं जिससे वह स्वास्थ्य का विकल्प बन सकें ।


           इसी प्रकार वर्तमान में शिक्षा व स्वास्थ्य के क्षेत्र में पर्याप्त कौशल प्रशिक्षण प्रदान करने की आवश्यकता है। हाल ही में नीति आयोग द्वारा शिक्षा के क्षेत्र में प्रशिक्षण के लिए दिशा पोर्टल की शुरुआत की, जो एक सफल उदाहरण हैं। इस तरह स्वास्थ्य के क्षेत्र में पर्याप्त प्रशिक्षिण को सुनिश्चित किया जाना चाहिए।


           इसके अतिरिक्त हमें सार्वजनिक – निजी भागीदारी को भी बढ़ावा दिया जाना चाहिए। शिक्षा व स्वास्थ्य के क्षेत्र में सार्वजनिक-निजी भागीदारी पर सरकार द्वारा कुछ मानक निर्धारित कर सभी के लिए सुचारू रूप से उपलब्ध करवानी चाहिए। 

           

                 "सा विद्या या विमुक्तये॥"


                हमारे भारत के ऋषि-मुनियों ने इस कथन के माध्यम से शिक्षा की महत्ता पर बल दिया है वहीं स्वास्थ्य के लिए " निरोगी सुख पहला  काया " की संकल्पना प्रस्तुत की हैं जो यह दर्शाता है कि हमारा प्राचीन इतिहास शिक्षा व स्वास्थ्य को लेकर कितना चिंतित था लेकिन आधुनिकरण के साथ-साथ शिक्षा व स्वास्थ्य हमारे लिए महंगी जड़े बन गई। 

                

            अत: यह हमारा दायित्व बनता हैं कि हम भारत के पिछडेपन के पैमाने को दूर कर एक मानक स्थापित करें जो सभी के लिए सुखद वातावरण निर्मित कर सकें। शिक्षा व स्वास्थ्य राष्ट्र की प्रगति के आरंभिक अंग हैं इसके बिना राष्ट्र मछली के लिए जल न होने जैसा होगा। इस प्रकार राष्ट्र की प्रगति में सरकार, नागरिक, हितधारक व अन्य समुदायों के साथ मिलकर गाँधीजी के स्वप्न का भारत निर्माण करें, जहाँ सभी के लिए प्रगतिशील मूल्य, प्रगतिशील विचार तथा प्रगतिशील सुविधाएं उपलब्ध हो ।


       "मानव इतिहास का नियम हैं एक भी कदम पीछे न हो॥"







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