Type Here to Get Search Results !

पक्षपातपूर्ण मीडिया भारत के लोकतंत्र के समक्ष एक वास्तविक खतरा है।

"पक्षपातपूर्ण मीडिया भारत के लोकतंत्र के समक्ष एक वास्तविक खतरा है"


Upsc standard books buy my store ,look out-https://www.amazon.in/shop/studyiaswithdharmendrajakhar?ref=inf_own_studyiaswithdharmendrajakhar


"पक्षपातपूर्ण मीडिया भारत के लोकतंत्र के समक्ष एक वास्तविक खतरा है"

       "दिल में बैचेनी है अब तो, किस पर करू विश्वास 
       खबर दिखाई जाती जो भी, सच के आस न पास 
       अपवाहों का बाजार गर्म है, कुछ भी कहना है पाप 
       सोशल नेटवर्क ही क्या कम थे, जो मीडिया बन गया               अभिशाप।"

           इस कथन के माध्यम से यह स्पष्ट होता हैं कि प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक 2021 में भारत का स्थान 150 देशों में से 142 वां क्यों हैं? जो भारतीय मीडिया की निम्न स्थिति को दर्शाता हैं, इस तरह मीडिया की निम्न स्थिति लोकतंत्र की स्थिति को भी प्रभावित करता है क्योंकि मीडिया को लोकतंत्र के चौथे स्तंभ की संज्ञा दी गई हैं। लेकिन हमें यह भी जानना आवश्यक हैं कि मीडिया एक कागज के अखबार से वर्तमान मोबाईल में लाइव प्रसारण तक किस तरह यह लोकतंत्र के लिए सहायक या पक्षपातपूर्ण रहा हैं? 

           

          यहाँ पक्षपातपूर्ण मीडिया से तात्पर्य हैं कि जब मीडिया अपने सार्वजनिक मूल्यों से हटकर अपने निजी हितों को वरियता देती हैं तथा किसी एक पक्ष से हटकर दूसरे पक्ष को प्रदर्शित करती हैं इसी को पक्षपातपूर्ण मीडिया कहा जाता हैं। आइए देखते हैं कि पक्षपातपूर्ण मीडिया किस तरह भारत के लोकतंत्र के लिए खतरा है?


           "पहले सोशल मीडिया के सच को जानने के लिए मीडिया को देखते थे लेकिन आज मीडिया के सच को जानने के लिए सोशल मीडिया को देखते हैं।" 


 👇👇Upsc prelims solved paper Best books 👇👇

             लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहा जाने वाला मीडिया वह हथियार हैं जो किसी भी राष्ट्र के विकास व लोककल्याणकारी राज्य की प्रगति की अवधारणा को प्राप्त करने में सहायक हो सकता है। लेकिन सिक्के का दूसरा पहलू यह भी कि मीडिया पक्षपातपूर्ण हो जाए, तो यह राष्ट्र के विकास व प्रगति दोनों के विरुद्ध होगा। 


         हालांकि भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में मीडिया द्वारा निभाई गई भूमिका चाहे वह अंग्रेजो की शोषणकारी प्रवृत्ति को उजागर करने में हो या फिर राष्ट्रीय जन मानव को एकत्रित करने में हो, इसी मीडिया की भूमिका को देखते हुए हमारे संविधान निर्माताओं ने मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहा था लेकिन हाल के प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक से यह प्रदर्शित होता है कि मीडिया लोकतंत्र के लिए दीर्घकालिक स्वप्न के विपरित हैं। 

         

         मीडिया को बच्चों के ज्ञान व परिवार के मनोरंजन के लिए महत्वपूर्ण माना जाता हैं तथा सुचारु व समावेशी विकास में भी मीडिया की महत्वपूर्ण भूमिका हैं लेकिन वर्तमान मीडिया ने बच्चों व परिवार दोनों स्तरों पर मानसिकता को प्रभावित किया है। मीडिया द्वारा ऐसे दृश्यों का प्रकाशन किया जाता है जो बच्चों के लिए मनोरंजन का साधन जरूर हैं लेकिन मानसिक रूप से सही नहीं हैं जैसे - पोगो चैनल |


             वहीं परिवार के स्तर पर मीडिया द्वारा ऐसा नकारात्मक परिवेश का निर्माण किया जाता हैं जिससे व्यक्ति में किसी जाति, समाज या समुदाय के प्रति घृणा की प्रवृत्ति बढ़ाता है जैसे- कोविड महामारी के समय तबलीगी जमात के प्रति नकारात्मक अभिवृत्ति का निर्माण। 


         इसी तरह समाज भी मीडिया से प्रभावित रहा है जहाँ समाज में धर्म के आधार पर लड़ाई में किसी विशेष के पक्ष का समर्थन तथा अन्य पक्ष की अवहेलना ने टीआरपी को जरूर बढ़ाया हैं, लेकिन समाज में घृणा, द्वेष, हिंसा व अन्य नकारात्मक मूल्यों का भी प्रसार करने में मीडिया की महत्वपूर्ण भूमिका रही हैं। 

         

        लोकतंत्र का आधार चुनाव की निष्पक्षता हैं लेकिन भारत में मीडिया द्वारा चुनाव के समय सरकार के सकारात्मक व सकारात्मक योगदान को पेश करने की बजाय किसी एक पक्ष को प्रदर्शित करते हैं जिससे चुनाव की निष्पक्षता प्रभावित होती हैं जैसे हाल ही में हुए चुनाव में भगवान की जाति संबंधित बहस व चर्चा।


          जब भारत में 26/11 का हमला हुआ था तब मीडिया के द्वारा हमले की लाइव कवरेज ने आंतंकियों को सुरक्षा एजेंसियों की सभी तरह की लाइव कवरेज प्राप्त हो रही थी जिससे हमलावरों से निपटने में सुरक्षाकर्मियों को अधिक विलंब हुआ था वही कारगिल युद्ध समिति ने भी मीडिया की भूमिका राष्ट्र के विरुद्ध प्रदर्शित की थी। ऐसे में यह कहा जा सकता है कि मीडिया की संवेदनशीलता किस तरह राष्ट्र की सुरक्षा के विरुद्ध हो सकती हैं।


             वहीं दूसरी तरफ भारत की विभिन्न फिल्मों में इतिहास को तरोड़-मरोड़ कर पेश किया जाता है जिससे विभिन्न वर्गों के मध्य असंतोष की भावना को जन्म दिया है। फिल्म पद्‌मावती के लिए देशव्यापी विरोध प्रदर्शन भी मीडिया के नकारात्मक रूप को दर्शाता है। लोकतंत्र का शाब्दिक अर्थ जनता के शासन से हैं वहीं दूसरी तरफ मीडिया का उद्देश्य जनता की आवाज़ सरकार तक पहुँचाना हैं लेकिन मीडिया द्वारा उन्ही मुद्दों को उठाया जाता हैं जो उनकी टी.आर.पी को बढ़ावा दे तथा लाभ को बढ़ायें, वर्तमान में ऐसे भी मुद्दे विद्यमान हैं जिनकी आवाज मीडिया को बननी चाहिए जैसे जनजातियों का विस्थापन, पर्यावरणीय मुद्दे, शिक्षा महिलाओं के हिंसा से संबंधित मुद्दे, किसानों की दरिद्रता व कृषि से संबंधित मुद्दे।


          भारत का संविधान वाक्‌ एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की गारंटी देता हैं जिसमें भारतीय नागरिक व मीडिया तथा अन्य हितधारक भी शामिल हैं लेकिन मीडिया द्वारा हेट स्पीच, अपवाह तथा मोबलिंचिग जैसी घटनाओं के प्रदर्शन से वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर भी प्रश्नचिन्ह लग गया है इसका सबसे अच्छा उदाहरण हम दिल्ली दंगों के रूप में देख सकते हैं जिसने भारत में भय के वातावरण को निर्मित किया था।


 "कागज पर लिखा एक शेर बकरी को चबा गया जबकि टीवी पर चर्चा हुआ कि बकरी शेर को खा गई।"


 

             उपरोक्त आधार पर हम यह कह सकते हैं कि मीडिया की नकारात्मक भूमिका ने लोकतंत्र को प्रभावित किया है लेकिन हमें सिक्के का दूसरा पहलु भी जानना आवश्यक हैं जो मीडिया के सकारात्मक होने के साथ साथ लोकतंत्र के विकास में भी सहायक रहा हैं जो निम्न हैं -


            स्वतंत्रता के पश्चात् भारत में जनसंख्या वृद्धि, निर्धनता, बेरोजगारी उच्चस्तर पर विद्यमान थी वही दूसरी तरफ भूखमरी से आधी जनसंख्या पीड़ित थी। यह मीडिया की सकारात्मक भूमिका ही हैं जिसने इनके विरुद्ध आवाज उठायी तथा सरकार का इनके प्रति ध्यान आकर्षित कर समाधान की तरफ प्रेरित किया।


        जब भारत में राष्ट्रीय आपातकाल था तब सरकार संवैधानिक मूल्यों से हटकर कार्य कर रही थी उस समय सरकार की कार्यप्रणाली को जनता के सामने प्रदर्शित किया, जिससे सरकार को आगामी चुनाव में हार का सामना करना पड़ा था। यह सकारात्मक लोकतंत्र सकारात्मक मीडिया के योगदान को दर्शाता है। 

        

            इसी तरह वर्तमान में चुनाव आयोग द्वारा मीडिया के माध्यम से उम्मीदवारों का प्रदर्शन किया जाता है जहाँ मीडिया पर उम्मीदवार के अपराधिक रिकॉर्ड, सम्पति ब्यौरा तथा पुलिस केस को दिखाया जाता हैं जिसका उद्देश्य अपराधिक प्रवृत्ति के व्यक्ति को राजनीति में रोकता है जिससे लोगों के मध्य वोट के अधिकार की सही पहचान प्राप्त हो सकें।


           वर्तमान इसी कोविड महामारी के दौर में मीडिया ने लोगों के मध्य कोविड से संबंधित जानकारी तथा सरकार के दिशा-निर्देशों को प्रसारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई हैं दूसरी तरफ सरकार की स्वास्थ्य अवसंरचना व कार्यप्रणाली को भी जनता के सामने उजागर किया है साथ ही प्रवासी मजदूरों की दयनीय स्थिति को भी प्रकट किया था जिसने सरकार को समाधान के लिए प्रेरित किया था।


"मीडिया पृथ्वी पर सबसे शक्तिशाली इकाई है। उनके पास निर्दोष को दोषी बनाने और दोषी को निर्दोष बनाने की शक्ति है, और यहीं शक्ति जो जनता के दिमाग को नियंत्रित करता हैं।"
                  - मैल्कम एक्स 

 

             लिहाजा यह कहा जा सकता है कि मीडिया के सकारात्मक योगदान से न केवल प्रतिनिधि लोकतंत्र को बढ़ावा दे सकते हैं बल्कि समावेशी समाज का निर्माण भी कर सकते हैं ऐसे में भारतीय मीडिया द्वारा उन सकारात्मक मूल्यों को अपनाना चाहिए, जो भारतीय संविधान की प्रस्तावना पर आधारित हम की भावना को बढ़ावा दें तथा वसुधैव कुटुम्बकम् की अवधारणा का विकास करें।


        इस प्रकार मीडिया को उन मुद्दो को भी उठाना आवश्यक हैं जो भारत जैसे राष्ट्र के विकास के लिए आवश्यक है। वर्तमान में बेरोजगारी, भुखमरी, कुपोषण, पर्यावरण तथा निर्धनता जैसे मुद्दों के प्रति सरकार की जवाबदेयता तय करने का महत्त्वपूर्ण  साधन मीडिया ही हैं। इसलिए मीडिया का यह दायित्व बनता है ऐसे मुद्दों को प्रारंभिक स्तर पर ले तभी हम प्रत्यक्ष लोकतंत्र में मीडिया की भूमिका सिद्ध कर पाएंगे।



#upsc #ias #essay #UPSC_essay

Post a Comment

0 Comments
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.