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आर्थिक समृद्धि हासिल करने के मामले में वन सर्वोत्तम प्रतिमान होते हैं | Forests are the best case studies for economic excellence

  1. आर्थिक समृद्धि हासिल करने के मामले में वन सर्वोत्तम प्रतिमान होते हैं
                    Forests are the best case studies for economic excellence
    (UPSC Mains Essay 2022 )

             एक बड़े जंगल की शुरुआत बंजर भूमि पर छोटे से बीज के अंकुरित होने से शुरू होकर एक विशालकाय जंगल की यात्रा के दौरान खूबसूरत पारितंत्र बनता है, जिसमें छोटे छोटे पेड़ पौधों से लेकर, बड़े विशालकाय बरगद के पेड़ भी होते हैं, जहां पर विभिन्न पशु पक्षियों की प्रजातियां निवास करती है। यह कहा भी जाता है कि जो जंगल में रहता है वह कभी भूखा नहीं रहता, कभी प्यासा नहीं रहता, जंगल सबको अपनी आवश्यकताओं के अनुसार देता है, जंगल में कभी अकाल नहीं पड़ता, कभी सूखा नहीं पड़ता। इसलिए कहा भी जाता है कि सतत व समावेशी दृष्टिकोण से वन सर्वोत्तम प्रतिमान होते हैं।


           आर्थिक उत्कृष्टता एक ऐसी स्थिति है जहाँ एक देश या समुदाय की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी होती है। इस स्थिति में देश की आर्थिक वृद्धि तेज होती है और लोगों के जीवन स्तर में सुधार होता है। आर्थिक उत्कृष्टता के लिए एक देश या समुदाय को विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्टता हासिल करनी होती है जैसे कि वित्तीय, औद्योगिक, कृषि, शिक्षा आदि। आर्थिक उत्कृष्टता के लिए देश को अपनी वित्तीय स्थिति को सुधारना होता है, जिसमें वह अपने बजट को संतुलित रखता है और अपनी आर्थिक नीतियों को अच्छी तरह से लागू करता है। अधिक उद्योगों के विकास और नवीनतम तकनीक के उपयोग से उद्यमिता को बढ़ावा देना भी आर्थिक उत्कृष्टता के लिए आवश्यक होता है।

          आईए अब जानने का प्रयास करते हैं कि वन, आर्थिक उत्कृष्टता के लिए किस प्रकार प्रतिमान है?, हम वनों से  क्या सीख सकते हैं?, क्या वनों से सीख कर हम एक  समावेशी विकास अर्थव्यवस्था का सृजन कर सकते हैं?, क्या वन और अर्थव्यवस्था के विकास की यात्रा एक जैसी है? आदि प्रश्नों के उत्तर को आगे हल करने का प्रयास करते है।

        जिस प्रकार एक वन में सभी जीव -जंतु ,पेड़ पौधे अपने पर्यावरण के साथ तालमेल बैठाते हुए साथ -साथ विकास करते हैं, साथ ही एक खाद्य श्रृंखला के साथ जुड़कर अपने भोजन -पोषण संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करते हैं, उसी तरह आर्थिक उत्कृष्टता हासिल करने के लिए अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों व उप क्षेत्रों  में पर्यावरण की तरह साथ साथ आगे बढ़ने और समावेशी विकास का नजरिया सीखा जा सकता है।

        यदि हम वन की खाद्य श्रृंखला का अध्ययन करें तो एक एकीकृत अवस्था नजर आती है, जिसमे खाद्य श्रृंखला प्राथमिक उत्पादक पेड़ -पौधों से शुरू होकर अपघटक पर जाकर खत्म होती है, इस दौरान खाद्य पदार्थों का अधिकतम दक्ष उपयोग किया जाता है ,अंतिम अवस्था तक किसी भी प्रकार की ऊर्जा व खाद्य पदार्थों को नष्ट नहीं किया जाता है। पुनः मिट्टी में मिल कर मिट्टी को उपजाऊ बनाते हैं, जो फिर से वनों द्वारा ही उपयोग में लिया जाता है। इसी तरह आर्थिक उत्कृष्टता हासिल करने के लिए अर्थव्यवस्था के प्रत्येक क्षेत्रों में संसाधनों का दक्ष उपयोग हम वनों से से सीख सकते हैं। आज हम रैखिक अर्थव्यवस्था से चक्रीय अर्थव्यवस्था की बात भी करते हैं जिसमे संसाधनों के दक्षतम उपयोग को बढ़ावा दिया जाता है।


         सदियों से हम देखते आ रहे हैं की प्राकृतिक आपदाएं जैसे बाढ़, सुनामी, वनाग्नि और चक्रवात वनों को कितना नुकसान पहुंचाते हैं, लेकिन समय के साथ वनों में पुनः उभरने की क्षमता ओर सर्वांगीण विकास देखने को मिलता है। इसी तरह यदि हमें आर्थिक उत्कृष्टता हासिल करनी है, तो वनों के इस गुण को हम सीख सकते हैं। जैसे हम सबने देखा की पूरी दुनिया कोविड-19 जैसी महामारी से प्रभावित हो रही थी। जहाँ एक तरफ लोग अपनों को खो रहे थे, वहीं दूसरी तरफ लॉकडाउन की स्थिति में लोगों की गरीबी, बेरोज़गारी भी बढ़ रही थी। इसी दौरान हमने देखा कि किस प्रकार भारत सरकार ने बहुआयामी दृष्टिकोण अपनाते हुए एक तरफ अपने स्वास्थ्य आधारभूत ढांचे पर ध्यान दिया, वहीं दूसरी तरफ लोगों के लिए रोजगार, भोजन आदि की भी व्यवस्था की।


          वनों में सहकार्यता व सहयोग के कईं उदाहरण देखे जा सकते हैं, जहाँ जीव जंतु और पेड़ पौधे साथ-साथ प्रगति करते हैं। पेड़-पौधे, पशु-पक्षियों को आवास और भोजन प्रदान करते हैं, वहीं जीव-जंतु, पेड़-पौधों की परागण आदि में सहायता करते हैं। यहाँ से हम सीख सकते है कि सहयोग के माध्यम से कैसे हम एक सर्वांगीण विकास का पारितंत्र बना सकते हैं। यदि ऐसा ही दृष्टिकोण हम आर्थिक उत्कृष्टता हासिल करने के लिए रखें, तो सबका साथ सबका विकास पाना बहुत ही आसान होगा, उदाहरण के लिए अर्थव्यवस्था में भी छोटे-बड़े उद्योग एक दूसरे के साथ सहयोग (कॉलेबोरेशन) कर सकते हैं। जहाँ आज का ज़माना तकनीकी व एआई (AI) का है, वहां ऐसे सहयोग (कॉलेबोरेशन) सभी आर्थिक क्षेत्रों के लिए क्रांतिकारी साबित हो सकते हैं।


          वन में हम सबसे बड़ा नियम देखते हैं 'योग्यतम की उत्तरजीविता' (सर्वाइवल ऑफ द फिटेस्ट) अर्थात् वे जीव-जन्तु और पेड़-पौधे ही विकसित हो पाते हैं, जो अपने आप को पर्यावरण के अनुकूल ढाल लेते हैं। जीवों में इस प्रकार के गुणों के कारण ही उनका आगे का विकास निर्भर करता है। इसी तरह हम देखते हैं कि अर्थव्यवस्था और विकास के सभी क्षेत्रों में वनों का यह नियम 'योग्यतम की उत्तरजीविता' काफी हद तक लागू होता है। जैसे विभिन्न सार्वजनिक उपक्रम जो सरकार के लिए घाटे का सौदा बन रहे हैं और उनको चलाने के लिए और अधिक निवेश की आवश्यकता रहती है, जबकि उनसे प्राप्त होने वाला लाभ बहुत कम होता है। इसलिए वर्तमान सरकार ऐसे घाटे वाले उपक्रमों का विनिवेश कर देती है। 


      वनों में स्थानीय पारिस्थितिकी संरक्षण (इकोलॉजिकल कंजर्वेशन) की अद्भुत क्षमता होती है, जिसमें बीजों के अंकुरण व संरक्षण से लेकर बड़े विशालकाय जंगल बनने तक की एक विकास यात्रा होती है। वन में पुराने पेड़-पौधे नष्ट होते चले जाते हैं और उनकी आगे की पीढ़ी की विकास यात्रा यूँ ही सतत रूप से जारी रहती है, उसी प्रकार सतत आर्थिक उत्कृष्टता के लिए किसी भी अर्थव्यवस्था में सभी क्षेत्रों के लिए समान अवसर, आगे बढ़ने की आजादी और निवेश तक पहुँच होनी चाहिए। उदाहरण के लिए भारत सरकार, छोटे व कुटीर उद्योगों को आगे बढ़ाने के लिए संस्थागत ऋण के साथ साथ अनेक उपाय कर रही है, जो निश्चित रूप से देश की आर्थिक उत्कृष्टता के लिए महत्वपूर्ण है।

        वन समावेशी विकास के सर्वोत्तम उत्कृष्ट उदाहरण है। वनों में किसी भी प्रजाति, जीव जंतु आदि के साथ किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं होता है, सबको आगे बढ़ने और विकास के लिए समान अवसर मिलते हैं। बाद में वो उस जीव-जंतु और प्रजाति की क्षमता पर निर्भर करता है कि आगे कितना विकास कर पाएगा। यदि इसी गुण को हम हमारी समावेशी विकास की अर्थव्यवस्था में लगाए तो बहुत सारे लिंग असमानता, जाति भेदभाव आदि के मुद्दों का समाधान निकाला जा सकता हैं, क्योंकि ये कहा भी जाता है कि यदि किसी देश में लिंग व जाति आधारित भेदभाव कम होते हैं तो उस देश के आगे बढ़ने की संभावना भी सर्वाधिक होती है।


         समय के साथ-साथ हम देखते हैं कि किस प्रकार एक छोटे से बीज का चट्टानों के बीच अंकुरित होकर एक बड़े जंगल बनने की यात्रा में वनों के विकास में कितना उतार चढ़ाव देखने को मिलता है। वनों में यह क्षमता भी होती है कि कैसे अपने उतार चढ़ाव से मुकाबला कर निरंतर आगे बढ़ते रहते है, अर्थात् समय ही वो सबसे बड़ा कारक है, जो वनों के विकास की गाथा को हमें बताता है। इसी तरह आर्थिक उत्कृष्टता हासिल करने के लिए भी समय सबसे बड़ा कारक है, क्योंकि किसी भी अर्थव्यवस्था में विकास के लिए समय के साथ छोटे छोटे कदम उठाकर ही बड़ी और सुदृढ़ अर्थव्यवस्था बना सकते हैं।


           वन पारितंत्र की सफलता में अनेक कारक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं जैसे खाद्य जाल व खाद्य श्रृंखला। यह सत्य है कि किसी भी खाद्य श्रृंखला में यदि किसी भी एक कड़ी में गड़बड़ी होती है तो पूरे पारितंत्र को इसका नुकसान उठाना पड़ता है। उदाहरण के लिए यदि किसी वन में बाघों की कमी होती है, तो उस क्षेत्र में प्राथमिक उपभोक्ताओं में वृद्धि हो सकती है, क्योंकि उनको नियंत्रण करने के लिए कोई बड़ा शिकारी उपलब्ध नहीं है, जो उस पारितंत्र को स्थायित्व प्रदान करता है। उसी तरह आर्थिक उत्कृष्टता के लिए भी बहुत से महत्त्वपूर्ण कारक होते हैं जो किसी अर्थव्यवस्था को स्थायित्व प्रदान करते है। किसी भी अर्थव्यवस्था के स्थायित्व और शक्ति संतुलन के लिए सरकार महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।


        किसी भी वन पारितंत्र का स्थायित्व इस बात पर निर्भर करता है कि उसमें कितनी विविधता पाई जाती है, अर्थात् विविधता ही वह आधारभूत कारक है जो किसी भी वन पारितंत्र को सतत रूप से स्थायित्व प्रदान करता है। इसी प्रकार अर्थव्यवस्था में भी विभिन्न क्षेत्रों में विविधता का होना आवश्यक है, जैसे वर्तमान में परंपरागत आर्थिक गतिविधियों के साथ-साथ आधुनिक तकनीकी व कृत्रिम बुद्धिमत्ता आधारित स्टार्टअप संस्कृति का उत्थान देखने को मिल रहा है।



          उपर्युक्त विश्लेषण के आधार पर यह कहा जा सकता है कि वास्तव में वन हमारी आर्थिक उत्कृष्टता के लिए सर्वोत्तम प्रतिमान है, लेकिन इसके लिए जरूरी यह होगा की आर्थिक उत्कृष्टता के लिए सभी भागीदारों को अपनी क्षमता के महत्त्व को समझना होगा और इसके लिए हमें व्यवहारिक प्रयासों की आवश्यकता होगी। भेदभाव को मिटाना होगा, वैश्विक स्तर पर वसुधैव कुटुंबकम् को बढ़ावा देना होगा। आज संयुक्त राष्ट्र संघ के द्वारा समावेशी विकास लक्ष्यों के माध्यम से ऐसे ही अनेक व्यवहारिक प्रयास किए जा रहे हैं।


 “अब तक की यात्रा ने हमें सिखाया है कि जंगल इस खूबसूरत ग्रह पर केवल जीवित रहने की आवश्यकता नहीं हैं, बल्कि समग्र उत्कृष्टता के लिए व्यक्ति, समाज, राष्ट्र या दुनिया के लिए अध्ययन का सबसे अच्छा विषय हैं।”




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